तेरा घर
· शिवनारायण गौर
वैसे ही खुलती हैं
वे खिड़कियॉं।
दरवाज़े भी खुलते हैं
वैसे ही।
घर से आती
रोशनी कहती है,
कोई इस घर में
रहती है।
लेकिन जब
ढूँढता हूँ
तुझको,
तो सूना ही है
यह घर,
तू नहीं रहती
वो सुबह कभी तो आएगी
उस दिन इतवार था। 6 फरवरी। सुबह करीब 8 बजे वह सोकर उठी। जब उसने अखबार का सिटी पन्ना खोला तो सबसे पहले खबर पढ़ी कि आज अमिताभ बच्चन भोपाल से मुम्बई जाने वाले हैं। खबर पढ़ते ही उसने अखबार का एक तरफ फेंका और मुझसे कहनी लगी, “पापा चलो एयरपोर्ट चलते हैं। अमिताभ बच्चन से मिलकर आऍंगे।” पहले तो मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि अमिताभ बचचन से ऐसे नहीं मिल सकते यदि वो मुम्बई जा भी रहे हैं तो एयर पोर्ट पर तमाम तरह की सुरक्षा व्यवस्था होगी। लेकिन जब वह नहीं मानी तो हम लोग करीब साढ़े आठ बजे एयरपोर्ट पहुँच गए। मुम्बई जाने वाली फ्लाइट 9:25 पर थी। नौ बज चुके थे। लगभग इस फ्लाइट से जाने वाले सभी यात्री अन्दर जा चुके थे। अब तक हम तीनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे। रितिका निराश थी। उसने अब तक मान लिया था कि उसने अखबार में गलत खबर पढ़ी थी। एयरपोर्ट के एक सुरक्षाकर्मी ने हमसे पूछा कि “आप लोग किसी से मिलने आए हैं?” रितिका ने जबाब दिया कि “हॉं हम अमिताभ बच्चन से मिलने आए हैं लेकिन शायद हमें गलत खबर मिली थी वो आज नहीं जा रहे हैं।” उस सुरक्षाकर्मी ने कहा, “नहीं आप सही समय पर आए हैं। थोड़ी ही देर में वे आने वाले हैं उनका निजि विमान है जिससे वे जाने वाले हैं। उसने एक जगह बताते हुए कहा कि आप लोग यहां खड़े हो जाएं कुछ ही समय बाद अमिताभ जी यहीं से निकलेंगे।”
कोई दसेक मिनिट बाद स्थानीय कोतवाली का एक वाहन आया। और फिर उसके पांच मिनिट बाद ही एक काले रंग की वेगेनार से अमिताभ बच्चन ग्रे रंग के ट्रेक सूट पहने उतरे। वे गाड़ी से उतरकर तेज़ गति से एयरपोर्ट की ओर जाने लगे। रितिका ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, “सर मुझे आटोग्राफ दे दीजिए।” अमिताभ ने उसकी आवाज़ सुनी “हॉं बेटा” कहा और वापस लौटकर रितिका के पास आए। उससे हाथ मिलाया। आटोग्राफ दिए और उसकी पीठ थपथपाकर वापस चले गए।
एक बच्चे की आवाज़ सुनकर वापस आना और उसे प्रोत्साहित करना, अमिताभ का इतना सरल और सहजपन वाकई कायल कर देता।
शिवनारायण गौर